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Wednesday, 30 September 2020
इम्युनिटी पावर कैसे बढ़ाएं? आयुर्वेद अनुसार इम्यूनिटी बढ़ाने के उपाय – How to boost immunity through Ayurveda
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सुखासन करने केे तरीके, लाभ, सावधानियाँ – Sukhasana karne ke tarike – Steps to do Sukhasana
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Tuesday, 29 September 2020
सुखासन करने के फायदें, विधि, लाभ और सावधानियाँ – Sukhasana karne ke fayde – Benefits of Sukhasana
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सुखासन क्या हैं – What is Sukhasana in Hindi – सुखासन के तरीके, लाभ, सावधानियाँ – Sukhasana benefits in Hindi
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Monday, 28 September 2020
कश्मीरः वादी–ए-शहजादी से धरती की जन्नत तक – kashmir mein ghumne ki jagah
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Sunday, 27 September 2020
Motherboard क्या है – What is Motherboard in Hindi ?
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सिरदर्द के लिए योग: आयुर्वेद के दृष्टिकोण से – Yoga for Headache as per Ayurveda in Hindi
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Friday, 25 September 2020
आयुर्वेदा के अनुसार दिनचर्या , दीर्घ जीवन के लिए – Ayurveda ke anusar dincharya, healthy life ke liye
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Thursday, 24 September 2020
सुषमा स्वराजः वकालत की डिग्री से लेकर भारत की विदेश मंत्री तक (Former Minister of External Affairs of India)
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Wednesday, 23 September 2020
दिल्ली में 10 Best घूमने वाली सबसे अच्छी जगहें – 10 Places To Visit In Delhi In Hindi
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Tuesday, 22 September 2020
Quarantine Hindi meaning – क्वारंटाइन हिंदी मीनिंग, क्या होता है क्वारंटाइन – What is quarantine ?
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Monday, 21 September 2020
USB Kya Hai – Full Form Aur यह कैसे काम करता है ?
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Friday, 18 September 2020
Atal Bihari Vajpayee ki Jeevani – भारत के पूर्व प्रधानमंत्री (Former Prime Minister of India)
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Chehre ke anchahe baal hatane ke asan 7 upay – चेहरे से अनचाहे बाल हटाने के आसान उपाय
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Skin chikni karne ke 16 upay – चिकनी चमकती त्वचा पाने के अनमोल रहस्य
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Tuesday, 15 September 2020
ऋतुचर्या : आयुर्वेद की दृष्टि से ऋतु अनुसार जीवनशैली में बदलाव
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तीन पुतले – Hindi Thriller Story
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Monday, 14 September 2020
कौवा और दुष्ट सांप – Hindi Moral Story
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Saturday, 12 September 2020
कम्प्यूटर के घटक (Components of Computer)
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Friday, 11 September 2020
दीपावली क्यों मनाया जाता है – Why is Diwali celebrated?
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Thursday, 10 September 2020
धन तेरस पर्व क्यों मनाया जाता है – Why is Dhanteras Celebrated ?
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Wednesday, 9 September 2020
Narendra Modi – भारत के प्रधानमंत्री (Prime Minister of India)
- शुरुआती जीवन – Initial Life of PM Narendra Modi
- RSS कार्यकर्ता के रूप में Narendra Modi
- BJP का अभ्युदय
- आम आदमी से मुख्यमंत्री तक का Narendra Modi का सफर
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी – शून्य से शिखर तक
- तकनीकि के साथ तालमेल
- सूर्खियाँ बटोरता मोदी कुर्ता
- फिल्मों के शौकीन प्रधानमंत्री मोदी
- कवि के रूप में पीएम मोदी
- Reference
26 मई 2014 – यह दिन भारतीय राजनीति के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण था। देश में पहली बार भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के रूप में एक गैर कांग्रेसी सरकार ने भारी जनादेश के साथ सत्ता के गलियारों में दस्तक दी थी। इस एतिहासिक जीत की चकाचौंध के केंद्र में सिर्फ एक ही चेहरा था, जिसके नाम का शोर देश की हर गलियों में गूँज रहा था और वो नाम था – नरेंद्र दामोदर दास मोदी।
गुजरात के एक चायवाले के रूप में शुरू हुआ ये सफर पहले राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ (RSS) के कार्यकर्ता फिर गुजरात के मुख्यमंत्री से होता हुआ भारत के प्रधानमंत्री (Prime Minister of India) तक जा पहुँचा। जिसके बाद सादगी से सम्पूर्ण मोदी का व्यक्तित्व न सिर्फ देश बल्कि विदेशों में भी आकर्षण का केंद्र बन गया और देखते ही देखते मोदी की छवि “ब्रांड मोदी” में तब्दील हो गई।
नाम (Name) | नरेंद्र दामोदर दास मोदी |
जन्म तिथि (Narendra Modi birthday) | 17 सितंबर 1950 |
जन्म स्थान (Birth Place) | बड़नगर, गुजरात, भारत |
आयु (Narendra Modi Age) | 69 वर्ष |
माता (Narendra Modi mother) | हीराबेन मोदी |
पिता (Narendra Modi father) | दामोदर दास मोदी |
पत्नी (Narendra Modi wife) | जसोदाबेन मोदी |
राजनीतिक दल (Political Party) | भारतीय जनता पार्टी (BJP) |
शुरुआती जीवन – Initial Life of PM Narendra Modi
नरेंद्र मोदी का जन्म 17 सितंबर 1950 (narendra modi birthday) को गुजरात के बड़नगर में हुआ था। यह वही दौर था, जब आजाद भारत का जन्म हुए महज तीन साल हुए थे और देश का संविधान लागू हुए कुछ महीने बाते थे। मोदी की माता हीराबेन मोदी (narendra modi mother) और पिता दामोदर मोदी (narendra modi father) की छह संतानों में मोदी तीसरी संतान थे। बहुत छोटी उम्र में ही मोदी की शादी जसोदाबेन मोदी (narendra modi wife)
छोटी उम्र में अमूमन बच्चों को जिंदगी किसी परियों की कहानी जैसी लगती है। लेकिन मोदी के साथ ऐसा बिल्कुल नहीं था, जिसका कारण था उनके परिवार की माली हालत। पिता स्टेशन पर चाय का स्टॉल लगाते थे, जिसमें मोदी भी उनकी मदद किया करते थे। परिवार के रहने के लिए एक छोटा सा घर था। जिदंगी के इन हालातों का ही नतीजा था कि मोदी ने उम्र से पहले ही जिम्मेदारियों का दामन थाम लिया।
आर्थिक तंगी से जूझते किसी प्रतिभावान बच्चे की ही तरह मोदी को भी पढ़ने-लिखने का बचपन से ही खूब शौक था। वो अपनी कक्षा में अव्वल आते थे, घण्टों तक स्कूल की लाइब्रेरी में बैठकर पढ़ते रहते थे। यही नहीं पढ़ाई के साथ-साथ स्कूल के दूसरे कार्यक्रमों में भी वो बढ़-चढ़ कर शिरकत करते थे। तैराकी करना उन्हें बचपन से ही बहुत पंसद था। साथ ही राजनीतिक मुद्दों में उनकी बढ़ती रुचि ने भविष्य बुनना शुरु कर दिया था।
हालांकि 9 साल की उम्र से ही मोदी की ख्वाहिश आर्मी ऑफिसर बनने की थी। उनके अनुसार देश की सेवा करने का यह सबसे अच्छा विकल्प था। कोशिशों की इसी कवायद के बीच मोदी का दाखिला सैनिक स्कूल में हो गया। लेकिन एक बार फिर गरीबी आड़े आ गई और फीस जमा न हो पाने के कारण आर्मी में जाने का सपना अधूरा रह गया। मगर भाग्य को तो कुछ और ही मंजूर था, क्योंकि मोदी को सिर्फ आर्मी की ही नहीं बल्कि देश की बागडोर संभालनी थी।
RSS कार्यकर्ता के रूप में Narendra Modi
सपनों को हासिल करने की जद्दोजहद के बीच 17 साल के नरेंद्र मोदी ने अपनी जिंदगी का सबसे अहम निर्णय लिया। उन्होंने घर छोड़कर भारत भ्रमण करने का फैसला किया। इस दौरान उन्हें हिमालय की गोद से लेकर पश्चिम बंगाल के रामकृष्ण आश्रम तक देश की अनेक विविधताओं से रूबरू होने का मौका मिला। इसके बाद मोदी पूर्वी भारत भी गए। भारत को जानने की जिज्ञासा ने उनके देशप्रेम को और भी प्रगाढ़ कर दिया। हालांकि अपने इस सफर में अगर मोदी किसी से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए तो वो थे स्वामी विवेकानन्द।
दो साल बाद मोदी वापस अपने घर पहुँचे, लेकिन इस बार उनके साथ सिर्फ उनके सपने नहीं थे बल्कि उन सपनों को पूरा करने का फॉर्मूला भी उन्होंने ढूंढ़ निकाला था। महज दो हफ्ते घर पर रहने के बाद मोदी अहमदाबाद में लिए रवाना हो गए। यहाँ उन्हें RSS का साथ मिला, जिसके बाद संघ कार्यकर्ता के रूप में मोदी के अंदर एक राजनीतिक व्यक्तित्व ने आकार लेना शुरु कर दिया था।
हालांकि RSS के साथ मोदी का सामना नया नहीं था। इससे पहले भी आठ साल की उम्र में RSS के सम्मेलन के दौरान मोदी जी ने वहाँ चाय का स्टॉल लगाया था। बेशक तब उनका राजनीति से कोई सरोकार नहीं था लेकिन उस सम्मेलन में लक्ष्मण राव इनामदार (वकील साहब) के भाषण से वो जमकर प्रभावित हुए थे। कई सालों बाद RSS के कार्यकर्ता के रूप में मोदी ने वकील साहब के ही सानिध्य में राजनीति के कई गुण सीखे। 20 साल की उम्र में सन् 1972 में मोदी RSS के प्रचारक बन गए। इसके बाद उन्होंने वर्ष 1973 और 1974 में अपने गृह राज्य गुजरात का भ्रमण किया, जिस दौरान उनकी मुलाकात संघ के बड़े-बड़े नेताओं से भी हुई।
70 का दशक भारतीय राजनीति में काफी उठा-पटक का दौर था। इसकी शुरुआत हुई भारत-पाकिस्तान युद्ध (1971) से। अपनी युवावस्था में RSS की कमान संभाले मोदी भी इस दशक के गवाह बन रहे थे। इस दौरान उन्होंने जयप्रकाश नारायण के सानिध्य में हो रहे “नव निर्माण अभियान” में भाग लिया तो दूसरी तरफ देश में आपातकाल का दंश झेल रही विपक्षी पार्टियों के साथ खड़े रहे।
BJP का अभ्युदय
सन् 1980 में जनता पार्टी की गठबंधन सरकार गिरने के बाद भारतीय जनता पार्टी अस्तित्व में आई। बीजेपी के गठन के बाद मोदी को दिल्ली में बीजेपी की कमान संभालने का फरमान मिला।
बेशक अपने गृह राज्य से दूर देश की राजधानी में पार्टी का दारोमदार संभालना मोदी के लिए एक बड़ी जिम्मेदारी थी।
आम आदमी से मुख्यमंत्री तक का Narendra Modi का सफर
यह सिलसिला काफी सालों तक चलता रहा। 90 के दशक में बीजेपी नेता केशुभाई पटेल गुजरात के मुख्यमंत्री बने। वहीं दूसरी तरफ केंद्र में भी बीजेपी की ही सरकार थी और अटल बिहारी बाजपेयी प्रधानमंत्री थे।
महज कुछ ही सालों बाद किन्हीं कारणों से गुजरात में बीजेपी की सरकार डगमगाने लगी। जाहिर है गुजरात को मोदी की जरूरत थी।
मोदी जी बताते हैं – “मैं दिल्ली में था। तभी मुझे अटल जी का फोन आया कि शाम को मुझसे आकर मिलो। जब मैं उनसे मिलने पहुँचा तो उन्होंने मुझे गुजरात वापस जाने का आदेश दिया। जाहिर है जिस गुजरात में मैंने राजनीति के गुण सीखे, इतने सालों तक उस गुजरात से दूर रहने के कारण वहाँ की राजनीति मुझे नयी सी लग रही थी”।
बैहरहाल, गुजरात पहुँचने के बाद साल 2001 में नरेंद्र मोदी सर्वसम्मति से गुजरात के मुख्यमंत्री बने। उस दौरान शायद मोदी को भी यह आभास न रहा होगा कि यहीं से उनकी तकदीर एक नया रूख लेने वाली है।
बतौर मुख्यमंत्री गुजरात की धरती पर मोदी की लोकप्रियता इस कदर परवान चढ़ी की वो साल 2001 से 2014 तक गुजरात के मुख्यमंत्री बने रहे, जिसके साथ ही मोदी गुजरात में सबसे लबें समय मुख्यमंत्री रहने वाली राजनीतिक शख्सियत बन गए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी – शून्य से शिखर तक
अबकी बार, मोदी सरकार
सबका साथ, सबका विकास
हर हर मोदी, घर घर मोदी
अच्छे दिन आने वाले हैं…
साल 2014 के आम चुनावों में मोदी के नाम का खुमार कुछ इस कदर परवान चढ़ा की देश की हर गली, मोहल्ले, नुक्कड़ ही नहीं बच्चों-बच्चों तक की जुबान पर यही नारे थे। सत्ता के गिलयारों में भी सिर्फ मोदी के नाम की सुगबुगाहट थी। लोकसभा चुनावों का चमकता चेहरा बन चुके मोदी ने पहली बार गुजरात से बाहर निकल कर काशी का दामन थामा और वाराणसी को अपनी संसदीय सीट चुना।
गुजरात के विकास मॉडल को लेकर प्रधानमंत्री की रेस में उतरे मोदी ने एक तरफ कांग्रेस के 70 सालों को कठघरे में खड़ा कर किया, तो दूसरी तरफ न्यू इंडिया का एजेंडा देश के सामने रख दिया। नतीजतन इन आम चुनावों में बीजोपी ने भारी बहुमत से जीत दर्ज की और नरेंद्र मोदी ने देश के 14वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। वर्तामान में बतौर प्रधानमंत्री मोदी जी तनख्वाह (narendra modi net worth) 2.5 करोड़ है।
लिहाजा सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने देश का कायाकल्प करना शुरु कर दिया। इस कड़ी में पहला कदम था – स्वच्छ भारत अभियान, जिसकी शुरूआत 2 अक्टूबर 2014 को की गई। इस कार्यकाल के दौरान बतौर पीएम उन्होंने कई चौंकाने वाले फैसले भी लिए। इन फैसलों ने कभी दुनिया को चकित कर दिया तो कभी इनसे देशवासियों को निराशा भी हाथ लगी। नोटबंदी, GST, सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक इन्हीं फौसलों में से एक हैं। तमाम उतार-चढ़ावों के बावजूद जनता पीएम मोदी के हर फैसले में उनके साथ खड़ी रही। जिसका परिणाम 2019 के आम चुनावों में देखने को मिला जब मोदी सरकार पिछली बार से भी अधिक जनादेश के साथ सत्ता में फिर से काबिज हुई।
सादगी और सौम्यता से परिपूर्ण मोदी के व्यक्तित्व ने उन्हें देश-विदेश में लोकप्रिय नेता बना दिया। जिसका उदाहरण मशहूर पत्रिका फोब्स की सूची में देखने को मिलता है, जिसने पीएम मोदी का नाम दुनिया के सबसे प्रभावशाली लोगों में शामिल किया।
तकनीकि के साथ तालमेल
20 के इस दशक में दुनिया तेजी से तकनीकि की तरफ बढ़ रही है। ऐसे में पीएम मोदी ने भी नए भारत की तरक्की में तकनीकि को महत्वपूर्ण बताया। पीएम मोदी ने न सिर्फ भारतीय अर्थव्यवस्था को पारंपरिक ढर्रे से उतार कर देश को “डिजिटल इंडिया” की सौगात दी बल्कि खुद भी तकनीकि के साथ तालमेल बिठाया। यही कारण है वर्तमान में पीएम मोदी सोशल मीडिया खासकर ट्वीटर @narendramodi (narendra modi twitter) पर सबसे ज्यादा एक्टिव रहने वाले नेताओं में से एक हैं। इसके अलावा सोशल मीडिया पर पीएम मोदी के ढेरों फॉलोवर हैं, जिससे उनकी प्रसिद्धि का अंदाजा लगाया जा सकता है।
सूर्खियाँ बटोरता मोदी कुर्ता
लोकप्रियता के शिखर को छूने के बाद पीएम मोदी की शख्सियत “ब्रांड मोदी” में तब्दील हो गई। जिसका सबसे बड़ा कारण था उनका सादगी भरा अंदाज। इस फेहरिस्त में एक नाम मोदी कुर्ता का भी है, जो उनकी सादगी में चार चाँद लगा देता है।
दरअसल अपने एक साक्षात्कार में पीएम ने मोदी कुर्ते पर बात करते हुए बताया था कि, “गुजरात में बतौर RSS कार्यकर्ता उन्हें काफी भागदौड़ करनी पड़ती थी, जिसके कारण उन्हें कुर्ता सबसे आरामदायक परिधान लगता था। हालांकि अपने कपड़े खुद धोने की वजह से उन्होंने कुर्ते की पूरी बाजुओं को काट हाफ कुर्ता बना लिया और यहीं से मोदी कुर्ता हमेशा के लिए पीएम मोदी की पहचान बन गया।
फिल्मों के शौकीन प्रधानमंत्री मोदी
पीएम मोदी ने भले ही शून्य से शिखर तक का सफर तय कर सत्ता की ऊचाइयों को छू लिया हो, लेकिन उनके शौक आज भी जमीन के बेहद करीब हैं। जिसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं पीएम मोदी का पसंदीदा खाना…। कई लोगों को यह जान कर आश्चर्य होगा पीएम मोदी को खिचड़ी खाना बेहद पंसद हैं और यही उनका सबसे पसंदीदा खाना है।
इसके अलावा पीएम मोदी को बचपन में फिल्मों और गानों का भी खूब शौक था। दरअसल अपने साक्षात्कार के दौरान मोदी बताते हैं कि, “वैसे तो बचपन में उन्हें फिल्में देखने का बहुत शौक था लेकिन राजनीति की मुख्य धारा में आने के बाद उन्हें फिल्म देखने का मौका नहीं मिला”। हालांकि पीएम मोदी बताते हैं कि उनकी पसंदीदा फिल्म ‘गाइड’ है, जो कि आर.के. नारायण के उपन्यास पर आधारित है।
वहीं उनका पसंदीदा गाना साल 1961 में आई फिल्म ‘जय चित्तौड़’ का गाना है, जिसे मशहूर गायिका लता मंगेशकर ने अपनी आवाज दी है। – “हो पवन वेग से उड़ने वाले घोड़े….तेरे कंधों पे आज भार है मेवाड़ का, करना पड़ेगा तुझे सामना पहाड़ का….हल्दीघाटी नहीं है काम कोई खिलवाड़ का, देना जवाब वहाँ शेरों के दहाड़ का……”
कवि के रूप में पीएम मोदी
प्रधानमंत्री मोदी न सिर्फ सहित्य पढ़ने के शौकीन हैं, बल्कि वे खुद भी एक साहित्यकार और कवि हैं। उनकी कई कविताएं और रचनाएं गुजराती भाषा में भी छपी हैं। जिनका हिंदी भाषा में भी अनुवाद किया गया है।
वो जो सामने मुश्किलों का अंबार है
उसी से तो मेरे हौसलों की मीनार है
चुनौतियों को देखकर, घबराना कैसा
इन्हीं में तो छिपी संभावना अपार है
विकास के यज्ञ में जन-जन के परिश्रम की आहुति
यही तो मां भारती का अनुपम श्रंगार है
गरीब-अमीर बनें नए हिंद की भुजाएं
बदलते भारत की, यही तो पुकार है।
देश पहले भी चला, और आगे भी बढ़ा
अब न्यू इंडिया दौड़ने को तैयार है,
दौड़ना ही तो न्यू इंडिया का सरोकार है।
– नरेंद्र मोदी
Reference
Wikipedia: Narednra Modi
Official Website: Narendra Modi
source https://hindiswaraj.com/narendra-modi-ki-jeevani-in-hindi/?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=narendra-modi-ki-jeevani-in-hindi
New Education Policy India 2020 – सरकार के सामने 10 बड़ी चुनौतियां
भारत देश मे 34 साल के बाद नई शिक्षा नीति को लागू किया गया है। इस नीति को लेकर सभी बहुत उत्साह पूर्ण नज़र आ रहे हैं। New Education Policy India 2020 प्रगतिशील, (Progressive) सृजनशील, (Creative) समृद्ध (Prosperous) एवं नैतिक मूल्यों (Moral values) से परिपूर्ण नए भारत के लिए कल्पना करती है। यह नीति अपने गौरवशाली इतिहास को पुनर्जीवित करने का स्वप्न दिखाती है।
When did the current education policy come into force वर्तमान शिक्षा नीति कब लागू हुई थी
वर्तमान समय मे जो शिक्षा नीति Education Policy चल रही है उसे 1986 में लागू किया गया था। तथा 1992 मे इसमे कुछ संशोधन भी किये गया थे। लेकिन वर्तमान समय की परिस्थितियों को देखते हुए यह अक्षम साबित हो रही थी। केवल पाठ को रट कर पास होने का कोई मतलब नही रह जाता। इसलिए New Education Policy India 2020 नई शिक्षा नीति मे सीखने पर ज़ोर दिया गया है।
अगर शिक्षा विदों की माने तो आज के समय मे सभी को आसानी से उपलब्ध होने वाली तथा कौशल विकास शिक्षा मुहैया कराने वाली सभी खुबियां इस नई शिक्षा नीति 2020 में मौजूद हैं। हालांकि सरकार इस नीति को संपूर्ण रुप से लागू करने के लिए 2040 तक की अवधि लेकर चल रही है।
Challenges faced by the government in New Education Policy India 2020 – सरकार के सामने आने वाली चुनौतियां
New Education Policy India 2020 मे सभी के लिए एक बेहतर शिक्षा प्रणाली को क्रियांवित किया गया है। लेकिन एक मत के अनुसार यह भी माना जा रहा है कि इस नीति को क्रियांवित करने के लिए सरकार को बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। सरकार के सामने जो चुनौतियाँ आने की संभावना है उनमे से 10 बड़ी चुनौतियाँ इस प्रकार हैं।
1. सभी तक इंटरनेट और कंप्यूटर की पंहुच नही (ऑनलाइन शिक्षा का बड़ा सपना)
केंद्र सरकार ने सौ प्रतिशत नामांकन के लिए ऑनलाइन और पत्राचार के माध्यम से शिक्षा देने पर विचार किया है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि देश के एक बहुत बड़े हिस्से तक इंटरनेट और कंप्यूटर की पहुँच संभव नही है। यहां तक की सरकारी स्कूलों मे भी अभी तक इनकी पूर्ण उपलब्धता नही हो सकी है। ऐसे मे सभी को ऑनलाइन के माध्यम से शिक्षा देने की बात कल्पना ज्यादा और यथार्थ कम लगती है। इसलिए यह बड़ी चुनौती सरकार के सामने हैं।
यूनिफाइड डिस्ट्रिक्स इनफॉर्मेशन ऑन स्कूल एजुकेशन, (Unified Districts Information on School Education) शिक्षा विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक केवल 9.85 प्रतिशत सरकारी स्कूलों मे ही कंप्यूटर की व्यवस्था है, और 4.09 प्रतिशत स्कूलों में इंटरनेट की सुविधा है। ऐसे मे सरकार के लिए सभी के लिए ऑनलाइन शिक्षा देने की इस नीति पर विचार किया जाना बहुत ही आवश्यक है।
2. शिक्षकों की संख्या मे कमी
एक सर्वे से पता चलता है कि प्राथमिक स्तर से लेकर विश्वविधालय स्तर तक ही नही बल्कि मेडिकल से लेकर इंजीनियरिंग तक हर जगह शिक्षकों की कमी है। अनेक प्राथमिक विधालय केवल एक शिक्षक के सहारे चल रहे हैं।
2018 तक देश में 10 लाख अध्यापकों की कमी थी। आर्थिक संसाधनों की कमी के कारण नई नियुक्तियां लगातार टाली जा रही थी। और वर्तमान समय में यह कमी और अधिक बढ़ चुकी है। ऐसे में यह कैसे संभव हो पाएगा कि सरकार अचानक से देश में शिक्षकों की सारी कमी को पूरी कर दे। यह एक विचार करने के लिए गंभीर विषय है जिस पर सरकार को निर्णय लेने होंगे।
3. उच्च शिक्षा में आरक्षण नही (दलित महिलाओं के लिए)
दलित महिला कांग्रेस अध्यक्ष की ऋतु चौधरी कहती हैं कि यूपीए सरकार ने समाज के सभी वर्गों को आगे बढ़ाने के लिए समुचित व्यवस्था की थी। और उच्च शिक्षा मे दलितों और महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए उन्हें उच्च शिक्षा में आरक्षण दिया गया था।
लेकिन वर्तमान मे शिक्षा नीति दलितों, महिलाओं और अल्पसंख्यकों को शिक्षा मे आरक्षण देने पर कुछ निर्णय नही ले रही है। इसके कारण दलित महिलाओं को उच्च शिक्षा प्राप्त करने मे परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
4. जामिया- जेएन यू में क्या हुआ था
ऋतु चौधरी का कहना हैं कि नई शिक्षा नीति में स्वतंत्र और तार्किक सोच को विकसित करने पर बल दिया गया है। लेकिन इसी कारण कार्यकाल में जवाहर लाल नेहरु विश्वविधालय, जामिया मिल्लिया विश्वविधालय, बनारस हिंदू विश्वविधालय और इलाहाबाद विश्वविधालय सहित अनेक विश्व विधालयों में छात्रों की स्वतंत्र सोच को कुचलने का प्रयास किया गया है। जिससे विधार्थियों के भविष्य पर गहरा असर पड़ सकता है। इसलिए इस विषय पर सरकार को विचार करना होगा।
5. आंगन बाड़ी के कार्यकर्ताओं पर निर्भरता
NEP 2020 में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं पर अधिक निर्भरता दिखाई देती है। नई शिक्षा नीति में सबसे बड़ा बदलाव यह देखने को मिलता है कि तीन साल से छह साल की उम्र के छोटे बच्चों को आंगनबाड़ी केंद्रों के जरिए औपचारिक शिक्षा में प्रवेश को लेकर माना जा रहा है। लेकिन ये सोचने वाली बात है कि क्या आंगनबाड़ी इसके लिए कुशल है? आंगनबाड़ी केंद्रों की स्थापना शिक्षा से वंचित बच्चों को थोड़ा ज्ञान देने के लिए तथा उन्हे कुपोषण से बचाने के लिए की गई थी।
अभी तक आंगनबाड़ी के कार्यकर्ताओं और उनके सहायकों को क्रमश: 450 रुपये और 2250 रुपये दिए जाते थे। यहां तक की वो शिक्षण कार्यों मे भी इतने दक्ष नही होते हैं। ऐसे मे सोचने वाली बात यह है कि वह बच्चों के बेहतर भविष्य की नींव कैसे रख सकते हैं।
6. आंगनबाड़ियों की अस्थिरता
2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक 3 लाख 62 हजार 940 आंगनबाड़ियों मे अभी तक शौचालय की सुविधा भी नही है। तथा एक लाख से अधिक केंद्रों मे पीने के साफ पानी की व्यवस्था भी उपलब्ध नही है। इन सभी बातों को ध्यान मे रखते हुए इन केंद्रों मे देश के करोड़ों बच्चों को उचित शिक्षा देने के दावों पर विचार करना बहुत ही आवश्यक हो जाता है।
7. शिक्षा नीति को लेकर सरकार के इरादे ठीक नही लगते (बोर्ड मे एक विचार धारा के लोग)
ऐसा कहा जा रहा है कि सरकार उच्च शिक्षा बोर्ड ऑफ गवर्नर (Higher Education Board of Governors) के जरिए संचालित करने की बात कह रही है। लेकिन अब तक का जो अनुभव रहा है उससे इस बात की आशंका बनती है कि इस बोर्ड में केवल एक विशेष विचारधारा के ही लोग होते हैं। और उन्ही के ज़रिए देश को चलाने की कोशिश की जाएगी।
ऐसा भी कहा जा रहा है कि इस शिक्षा नीति को लागू करने से पहले संसद में बहस तक का इंतजार भी नही किया गया था जिससे यह बात निकल कर आती है, कि सरकार के इरादे ठीक नही है जिससे देश के लिए परेशानी हो सकती है।
8. निजीकरण हर समस्या का हल नही हो सकता
दिल्ली विश्वविधालय एकेडमिक काउंसिल (Delhi University Academic Council) के सदस्य राजेश झा कहते हैं कि इसी सरकार ने चंद दिनों पहले तक सभी विश्वविधालयों और अन्य शिक्षण संस्थाओं को अपने स्तर पर बाजार से फंड की व्यवस्था करने के निर्देश दिए थे।
इस बात से यह साबित होता है कि उसके पास उच्च शिक्षण संस्थानों का खर्च उठाने की हालत नही रह गए हैं। ऐसे में अचानक सरकार के पास इतना धन कहां से आएगा कि वह जीडीपी का फीसदी खर्च करते हुए इतना बड़ा लक्ष्य हासिल कर लें। उन्होने कहा कि इन चीज़ों को देखकर सरकार के दावों पर यकीन करना बहुत ही कठिन है।
9. शुरुआती शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण
बच्चों की शुरुआती पांच साल की शिक्षा बहुत ही महत्वपूर्ण होती है यह शिक्षा इस अर्थ में बहुत महत्वपूर्ण है कि इससे अवैध प्ले स्कूलों को एक ढांचे के अंतर्गत लाया जा सकेगा। शिक्षकों की पक्की नियुक्ति से तदर्थ शिक्षकों को भारी राहत मिलेगी। लेकिन इसमे सोचने की बात यह है कि सभी के लिए प्रारंभिक शिक्षा को सिर्फ आंगन बाड़ी के माध्यम से कैसे पूरा किया जा सकता है जबकि अभी तक सभी केंद्रों मे संपूर्ण सुविधा उपलब्ध नही है।
10. लक्ष्य बहुत बड़ा, समय सीमा 15 वर्ष
नेशनल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट (National Democratic Teachers Front) के अध्यक्ष एके भागी कहते हैं कि सरकार ने इस लक्ष्य को इसी वर्ष हासिल करने का लक्ष्य निर्धारित नही किया है। इसके लिए 15 वर्ष की समय सीमा निर्धारित की गई है। वर्तमान में भी सरकार शिक्षा पर जीडीपी का चार प्रतिशत से अधिक खर्च करती है। ऐसे में 15 वर्षों की समय सीमा में 6 प्रतिशत का लक्ष्य बहुत बड़ा नही है। यह लक्ष्य तो 1964 में ही तय किया गया था। इसलिए अगर सरकार के इरादे सही हैं तो इसे हासिल करने में बड़ी मुश्किल नहीं आने वाली।
निष्कर्ष- दोस्तों इस लेख में हमने आपको नई शिक्षा नीति 2020 को लागू करने के लिए इनके सामने आने वाली चुनौतियों के बारे मे बताया है। देश मे बेहतर परिवर्तन के लिए नई शिक्षा नीति को लागू करना बहुत ही अच्छा होगा लेकिन इसको लेकर सरकार के सामने कई बड़ी चुनौतियाँ भी सामने आई हैं जिनके बारे मे गंभीरता से गहन करना बहुत ज़रुरी है जिससे इस नीति को प्रभावी ढंग से लागू किया जा सके और बच्चों के बेहतर भविष्य का निर्माण किया जा सके।
इस नीति के माध्यम से पढ़ाई को सिर्फ रट कर परीक्षा पास करने के स्थान पर व्यवहारिक तरीके से चीज़ों को समझने पर ज़ोर दिया गया है जिससे सही मायने मे बच्चों का विकास हो सके।
Reference
Bharat Sarkar: NEP 2020
MHRD: New Education Policy 2020
source https://hindiswaraj.com/new-education-policy-india-2020-10-challenges-in-hindi/?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=new-education-policy-india-2020-10-challenges-in-hindi
करवा चौथ क्यों मनाते हैं – Why is Karwa Chauth celebrated?
भारतीय परिवार की पूर्णता नारी से ही है । भारतीय संस्कृति की धुरी होती है नारी । नारी से ही भारतीय संस्कृति संरक्षित है । भारतीय नारी के लिये परिवार से बढ़कर और कुछ नहीं उनका जीवन पति, बच्चे और परिवार ही होता है । कभी संतान के लिये तो कभी पति के लिये वह नाना प्रकार के व्रत नियम करती रहती है ।
भारतीय पौराणिक इतिहास में सती अनुसुईया का नाम बहुत श्रद्धा से लिया जाता है, जिन्होंने अपने सतीत्व के बल पर सृष्टि के त्रिदेव ब्रह्मा, बिष्णु, और महेश तीनों को छोटे-छोटे बालक बना दिया हैं । रामचरित मानस में सति अनुसुईया माता सीता को पति का महत्व बताते हुई कहती हैं-
“एकै धर्म एक व्रत नेमा । काय वचन मन पति पद प्रेमा”
मतलब नारी के लिये एक ही व्रत, एक ही धर्म, एक ही नियम है कि वह अपने मन, वचन, और कर्म से केवल और केवल अपने पति से ही प्रेम करे । इसी भाव से भारतीय नारी अपने पति के दीर्घायु एवं स्वास्थ्य के कामना के लिये कई व्रत करती हैं जिनमें सब से अधिक प्रचलित व्रत ‘करवा चौथ’ है, जो आज एक व्रत होकर भी एक पर्व के रूप में मनाया जाने लगा है ।
‘करवा चौथ’ सुहागन स्त्रियों द्वारा किये जाना वाला एक व्रत है, जिसे भारत के विभिन्न हिस्सों में शहरी महिलाओं से लेकर ग्रामीण महिलाएं इसे उत्साह के साथ करती है । इस व्रत में एक विशेष प्रकार के मिट्टी का टोटीदार पात्र उपयोग में लाया जाता है, जिसे करवा कहते हैं । इसी के नाम से इसे करवा चौथ कह देते हैं । ऐसे इसे करक चतुर्थी कहा जाता है । करवा को माता गौरी का प्रतीक भी माना जाता है । वास्तव में माता गौरी को सौभाग्य की देवी मानते हैं । यह व्रत उन्हीं को समर्पित होता है ।
करवा चौथ कब मनाते है – When is Karwa Chauth celebrated?
करवा चौथ प्रति वर्ष हिन्दी पंचाग के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष के चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है । इस व्रत को केवल सुहागन स्त्रियां ही करती हैं किन्तु पूरे परिवार में उत्सव का माहौल रहता है । इस दिन महिलाएं सुबह से रात्रि चंद्र दर्शन होने तक निर्जला उपवास करती हैं ।
करवा चौथ क्यों मनाते हैं – Why is Karwa Chauth celebrated?
करवा चौथ व्रत करने के पिछे केवल और केवल एक ही उद्देश्य होता है हर पत्नी चाहती हैं कि उसका पति स्वस्थ एवं दीर्घायु हो । इसी कामना को लेकर यह व्रत किया जाता है । इस व्रत पर करवा चौथ की कई कहानियां कही जाती है जिसमें कोई न कोई करवा चौथ का व्रत करती हुई सति नारी अपने पति का जीवन बचाया । किन्तु वास्तव में कब और कैसे प्रारंभ हुआ इस विषय पर बहुत विद्वानों का मत है
देवासुर संग्राम के समय देवताओं के पत्नियों ने सबसे पहले इस व्रत को किया । बहुत विद्वानों का मत है कि सति सावित्रि द्वारा अपने पति सत्यवान के मृत्यु के पश्चात भी यमराज से जीवित करा ले ने के पश्चात से इस व्रत का प्रारंभ हुआ है ।
पौराणिक कथा के अनुसार सावित्रि नाम की एक सती नारी थी जो मन, वचन और क्रम से केवल और केवल अपने पति की सेवा किया करती थी । एक समय यमराज उनके पति सत्यवान को यमलोक लेने आ गये और सत्यवान का धरती में समय पूरा हो गया कह कर उसे ले जाने लगे अर्थात सत्यवान की मृत्यु हो गई ।
इस पर सावित्रि अपने पति के वियोग में बिलख-बिलख कर रोने लगी और यमराज से अपने पति के प्राण की भीख मांगने लगी किंतु यमराज पर उसका कोई प्रभाव नहीं हुआ । सावित्रि यमराज से याचना करती हुई यमलोक तक पहुँच गई और अन्न-जल त्याग कर केवल अपने पति के प्राणों की भीख मांगती रही ।
सावित्रि के याचना से यमराज द्रवित हो गया और उसने कहा चूँकि जन्म और मृत्यु हर जीव का निश्चित होता है और सत्यवान का जीवन काल पूर्ण हो गया है इसलिये इसे जीवित करना संभव नहीं किंतु तुम्हारे इस पति प्रेम से मैं बहुत प्रसन्न हूँ, तुम सत्यवान के प्राण के अतिरिक्त कुछ भी वरदान मांग लो ।
सावित्रि अपने पति के प्राण मांगने के बदले में यमराज से खुद बहुपुत्रवती होने का वरदान मांग ली । यमराज प्रसन्नता में तथास्तु कह दिया । तब सावित्रि ने कहा देव आप ने मुझे पुत्रवती होने का वरदान दिया है । मैं एक सति नारी हूँ कभी किसी पराये पुरूष का मुख भी नहीं देखती हूँ, यदि आप मेरे पति के प्राण वापस नहीं किये तो आपका वरदान झूठा हो जायेगा ।
यमराज अपने वचन में बंध चुका था विवश होकर उसे सत्यवान के प्राण लौटाने पड़े । इस दिन संयोग से कार्तिक कृष्ण चतुर्थी था इसलिये इसके बाद से ही नारियां अपने पति के प्राणों की रक्षा के निमित्त अन्न–जल त्याग कर यह व्रत करती हैं ।
माता गौरी को सौभग्य की देवी माना जाता है, उन्हीं से कुँवारी कन्यायें पति की इच्छा के लिये पूजा करती है तो सुहागन महिलाएं अपने सौभाग्य के लिये ।
करवा चौथ किस प्रकार मनाया जाता है – How is Karwa Chauth Celebrated?
कार्तिक कृष्ण चतुर्थी के दिन विवाहित सौभाग्यवती महिलाएं सुबह से निर्जलाव्रत रखती हैं, और व्रत रखे-रखे शाम की पूजा की तैयारी करती हैं । अपने-अपने क्षेत्र में प्रचलित व्यंजन बनाती है । शाम से ही चन्द्रमा के उदय होने की प्रतिक्षा करती हैं ।
शाम को अपने छत, ऑंगन या खुले स्थान जहां से चन्द्रमा को देखा जा सके, उस स्थान पर शुद्ध आसन लगाकर शिव परिवार अर्थात माता पार्वती के साथ उनके पति भगवान भोले नाथ, पुत्रों गणेशजी एवं कार्तिक की प्रतिमा लगा कर स्थापित करते हैं साथ ही टोटीदार बने मिट्टी के पात्र जिसे करवा कहते हैं को सजा कर रखा जाता है ।
शुभ मुर्हुत में विधि-विधान से पूजा की जाती है । पूजन पश्चात छलनी पर दीपक रख कर क्रमश: चौथ के चाँद को और अपने पति को देखा जाता है । चूँकि महिलाएं निर्जला व्रत रखे रहतीं हैं, इसलिये व्रत का परायण करते हुये अपने पति के हाथों कुछ घूँट पानी पीती हैं । इस प्रकार इस व्रत से पति-पत्नी के बीच प्रेम भाव और अधिक प्रगाढ़ होता है ।
करवा चौथ का व्रत आज कल पर्व के रूप में मनाया जाने लगा है । इस व्रत को पहले मुख्य रूप से उत्तर भारत के कुछ राज्यों में ही रखा जाता था किन्तु अब इसका प्रचलन धीरे-धीरे पूरे भारत में हो रहा है । जैसे कि हर पर्वो पर बाजार गुलजार हो जाता है इस पर्व पर भी विशेष रूप से बाजार सजते हैं ,
जहां से महिलायें करवा चौथ के लिये पूजन की सामाग्री, अपने सास के लिये उपहार खरीदती हैं, वहीं पति भी अपने पत्नियों के लिये उपहार खरीदते हैं । व्रत पूजन की तैयारी के लिये घर में नाना प्रकार के व्यंजन भी बनाये जाते हैं जिससे घर में एक खुशी का माहौल, उत्सव का माहौल होता है । जॉर्डन महिलायें इसे पति दिवस के रूप मनाती हैं ।
करवा चौथ का महत्व – Importance of Karwa Chauth
चूँकि इस व्रत को महिलायें अपने पति के लिये करती हैं और व्रत का परायण अपने पति के हाथों पानी पीकर करती हैं । इससे पति-पत्नी के मध्य संबंध निश्चित रूप और अधिक मजबूत होता है । इसी व्रत के परायण करने के पश्चात महिलायें अपनी सास को उपहार भी देती हैं इससे सास-बहू के संबंधों में मधुरता आती है ।
सास-बहू का संबंध ही परिवार के लिये नींव के समान होता है । यदि सास-बहू के बीच संबंध मधुर होगा तो निश्चित रूप से परिवार खुश हाल होगा । इस प्रकार इस पर्व का धार्मिक महत्व होने के साथ-साथ पारिवारिक महत्व भी है । यदि पति-पत्नी के बीच संबंध अच्छा होगा, दोनों के मध्य सहज प्रेम होगा तो दोनों तनाव रहित जीवन व्यतित करेंगे जिससे निश्चित रूप से पति-पत्नी दोंनो की जीवन प्रत्याशा बढ़ेगी अर्थात दोनों के आयु लंबी होगी । इस प्रकार यह पर्व अपने उद्देश्य में कहीं न कहीं व्यवहारिक रूप से सफल होता है ।
अन्य पर्वो के भांति इस पर्व में भी समान्य दिनों के अपेक्षा अधिक ख़रीददारी की जाती है जिससे बाजार में रौनक रहती है । इस प्रकार यह देश के आर्थिक विकास में भी अपना योगदान देने में सफल रहता है ।
इस व्रत के करने से समाज में नारीयों के प्रति दृष्टिकोण में सकारात्मक परिवर्तन होता है घरेलू हिंसा में कमी आती है । लोगों के मन मस्तिष्क में स्वभाविक रूप से यह बात आती है कि -जिस नारी का पूरा जीवन परिवार में खप जाता हो ऐसे नारियों का सम्मान किया ही जाना चाहिये । ऐसे भी हमारे धर्म ग्रन्थों में कहा गया है- ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:’ ।
और त्योहारों के बारे में जानने के लिए हमारे फेस्टिवल पेज को विजिट करें Read about more Indian Festivals, please navigate to our Festivals page.
Reference
source https://hindiswaraj.com/karwa-chauth-kyu-manate-he-in-hindi/?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=karwa-chauth-kyu-manate-he-in-hindi
करवा चौथ क्यों मनाते हैं – Why is Karwa Chauth celebrated?
भारतीय परिवार की पूर्णता नारी से ही है । भारतीय संस्कृति की धुरी होती है नारी । नारी से ही भारतीय संस्कृति संरक्षित है । भारतीय नारी के लिये परिवार से बढ़कर और कुछ नहीं उनका जीवन पति, बच्चे और परिवार ही होता है । कभी संतान के लिये तो कभी पति के लिये वह नाना प्रकार के व्रत नियम करती रहती है ।
भारतीय पौराणिक इतिहास में सती अनुसुईया का नाम बहुत श्रद्धा से लिया जाता है, जिन्होंने अपने सतीत्व के बल पर सृष्टि के त्रिदेव ब्रह्मा, बिष्णु, और महेश तीनों को छोटे-छोटे बालक बना दिया हैं । रामचरित मानस में सति अनुसुईया माता सीता को पति का महत्व बताते हुई कहती हैं-
“एकै धर्म एक व्रत नेमा । काय वचन मन पति पद प्रेमा”
मतलब नारी के लिये एक ही व्रत, एक ही धर्म, एक ही नियम है कि वह अपने मन, वचन, और कर्म से केवल और केवल अपने पति से ही प्रेम करे । इसी भाव से भारतीय नारी अपने पति के दीर्घायु एवं स्वास्थ्य के कामना के लिये कई व्रत करती हैं जिनमें सब से अधिक प्रचलित व्रत ‘करवा चौथ’ है, जो आज एक व्रत होकर भी एक पर्व के रूप में मनाया जाने लगा है ।
‘करवा चौथ’ सुहागन स्त्रियों द्वारा किये जाना वाला एक व्रत है, जिसे भारत के विभिन्न हिस्सों में शहरी महिलाओं से लेकर ग्रामीण महिलाएं इसे उत्साह के साथ करती है । इस व्रत में एक विशेष प्रकार के मिट्टी का टोटीदार पात्र उपयोग में लाया जाता है, जिसे करवा कहते हैं । इसी के नाम से इसे करवा चौथ कह देते हैं । ऐसे इसे करक चतुर्थी कहा जाता है । करवा को माता गौरी का प्रतीक भी माना जाता है । वास्तव में माता गौरी को सौभाग्य की देवी मानते हैं । यह व्रत उन्हीं को समर्पित होता है ।
करवा चौथ कब मनाते है – When is Karwa Chauth celebrated?
करवा चौथ प्रति वर्ष हिन्दी पंचाग के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष के चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है । इस व्रत को केवल सुहागन स्त्रियां ही करती हैं किन्तु पूरे परिवार में उत्सव का माहौल रहता है । इस दिन महिलाएं सुबह से रात्रि चंद्र दर्शन होने तक निर्जला उपवास करती हैं ।
करवा चौथ क्यों मनाते हैं – Why is Karwa Chauth celebrated?
करवा चौथ व्रत करने के पिछे केवल और केवल एक ही उद्देश्य होता है हर पत्नी चाहती हैं कि उसका पति स्वस्थ एवं दीर्घायु हो । इसी कामना को लेकर यह व्रत किया जाता है । इस व्रत पर करवा चौथ की कई कहानियां कही जाती है जिसमें कोई न कोई करवा चौथ का व्रत करती हुई सति नारी अपने पति का जीवन बचाया । किन्तु वास्तव में कब और कैसे प्रारंभ हुआ इस विषय पर बहुत विद्वानों का मत है
देवासुर संग्राम के समय देवताओं के पत्नियों ने सबसे पहले इस व्रत को किया । बहुत विद्वानों का मत है कि सति सावित्रि द्वारा अपने पति सत्यवान के मृत्यु के पश्चात भी यमराज से जीवित करा ले ने के पश्चात से इस व्रत का प्रारंभ हुआ है ।
पौराणिक कथा के अनुसार सावित्रि नाम की एक सती नारी थी जो मन, वचन और क्रम से केवल और केवल अपने पति की सेवा किया करती थी । एक समय यमराज उनके पति सत्यवान को यमलोक लेने आ गये और सत्यवान का धरती में समय पूरा हो गया कह कर उसे ले जाने लगे अर्थात सत्यवान की मृत्यु हो गई ।
इस पर सावित्रि अपने पति के वियोग में बिलख-बिलख कर रोने लगी और यमराज से अपने पति के प्राण की भीख मांगने लगी किंतु यमराज पर उसका कोई प्रभाव नहीं हुआ । सावित्रि यमराज से याचना करती हुई यमलोक तक पहुँच गई और अन्न-जल त्याग कर केवल अपने पति के प्राणों की भीख मांगती रही ।
सावित्रि के याचना से यमराज द्रवित हो गया और उसने कहा चूँकि जन्म और मृत्यु हर जीव का निश्चित होता है और सत्यवान का जीवन काल पूर्ण हो गया है इसलिये इसे जीवित करना संभव नहीं किंतु तुम्हारे इस पति प्रेम से मैं बहुत प्रसन्न हूँ, तुम सत्यवान के प्राण के अतिरिक्त कुछ भी वरदान मांग लो ।
सावित्रि अपने पति के प्राण मांगने के बदले में यमराज से खुद बहुपुत्रवती होने का वरदान मांग ली । यमराज प्रसन्नता में तथास्तु कह दिया । तब सावित्रि ने कहा देव आप ने मुझे पुत्रवती होने का वरदान दिया है । मैं एक सति नारी हूँ कभी किसी पराये पुरूष का मुख भी नहीं देखती हूँ, यदि आप मेरे पति के प्राण वापस नहीं किये तो आपका वरदान झूठा हो जायेगा ।
यमराज अपने वचन में बंध चुका था विवश होकर उसे सत्यवान के प्राण लौटाने पड़े । इस दिन संयोग से कार्तिक कृष्ण चतुर्थी था इसलिये इसके बाद से ही नारियां अपने पति के प्राणों की रक्षा के निमित्त अन्न–जल त्याग कर यह व्रत करती हैं ।
माता गौरी को सौभग्य की देवी माना जाता है, उन्हीं से कुँवारी कन्यायें पति की इच्छा के लिये पूजा करती है तो सुहागन महिलाएं अपने सौभाग्य के लिये ।
करवा चौथ किस प्रकार मनाया जाता है – How is Karwa Chauth Celebrated?
कार्तिक कृष्ण चतुर्थी के दिन विवाहित सौभाग्यवती महिलाएं सुबह से निर्जलाव्रत रखती हैं, और व्रत रखे-रखे शाम की पूजा की तैयारी करती हैं । अपने-अपने क्षेत्र में प्रचलित व्यंजन बनाती है । शाम से ही चन्द्रमा के उदय होने की प्रतिक्षा करती हैं ।
शाम को अपने छत, ऑंगन या खुले स्थान जहां से चन्द्रमा को देखा जा सके, उस स्थान पर शुद्ध आसन लगाकर शिव परिवार अर्थात माता पार्वती के साथ उनके पति भगवान भोले नाथ, पुत्रों गणेशजी एवं कार्तिक की प्रतिमा लगा कर स्थापित करते हैं साथ ही टोटीदार बने मिट्टी के पात्र जिसे करवा कहते हैं को सजा कर रखा जाता है ।
शुभ मुर्हुत में विधि-विधान से पूजा की जाती है । पूजन पश्चात छलनी पर दीपक रख कर क्रमश: चौथ के चाँद को और अपने पति को देखा जाता है । चूँकि महिलाएं निर्जला व्रत रखे रहतीं हैं, इसलिये व्रत का परायण करते हुये अपने पति के हाथों कुछ घूँट पानी पीती हैं । इस प्रकार इस व्रत से पति-पत्नी के बीच प्रेम भाव और अधिक प्रगाढ़ होता है ।
करवा चौथ का व्रत आज कल पर्व के रूप में मनाया जाने लगा है । इस व्रत को पहले मुख्य रूप से उत्तर भारत के कुछ राज्यों में ही रखा जाता था किन्तु अब इसका प्रचलन धीरे-धीरे पूरे भारत में हो रहा है । जैसे कि हर पर्वो पर बाजार गुलजार हो जाता है इस पर्व पर भी विशेष रूप से बाजार सजते हैं ,
जहां से महिलायें करवा चौथ के लिये पूजन की सामाग्री, अपने सास के लिये उपहार खरीदती हैं, वहीं पति भी अपने पत्नियों के लिये उपहार खरीदते हैं । व्रत पूजन की तैयारी के लिये घर में नाना प्रकार के व्यंजन भी बनाये जाते हैं जिससे घर में एक खुशी का माहौल, उत्सव का माहौल होता है । जॉर्डन महिलायें इसे पति दिवस के रूप मनाती हैं ।
करवा चौथ का महत्व – Importance of Karwa Chauth
चूँकि इस व्रत को महिलायें अपने पति के लिये करती हैं और व्रत का परायण अपने पति के हाथों पानी पीकर करती हैं । इससे पति-पत्नी के मध्य संबंध निश्चित रूप और अधिक मजबूत होता है । इसी व्रत के परायण करने के पश्चात महिलायें अपनी सास को उपहार भी देती हैं इससे सास-बहू के संबंधों में मधुरता आती है ।
सास-बहू का संबंध ही परिवार के लिये नींव के समान होता है । यदि सास-बहू के बीच संबंध मधुर होगा तो निश्चित रूप से परिवार खुश हाल होगा । इस प्रकार इस पर्व का धार्मिक महत्व होने के साथ-साथ पारिवारिक महत्व भी है । यदि पति-पत्नी के बीच संबंध अच्छा होगा, दोनों के मध्य सहज प्रेम होगा तो दोनों तनाव रहित जीवन व्यतित करेंगे जिससे निश्चित रूप से पति-पत्नी दोंनो की जीवन प्रत्याशा बढ़ेगी अर्थात दोनों के आयु लंबी होगी । इस प्रकार यह पर्व अपने उद्देश्य में कहीं न कहीं व्यवहारिक रूप से सफल होता है ।
अन्य पर्वो के भांति इस पर्व में भी समान्य दिनों के अपेक्षा अधिक ख़रीददारी की जाती है जिससे बाजार में रौनक रहती है । इस प्रकार यह देश के आर्थिक विकास में भी अपना योगदान देने में सफल रहता है ।
इस व्रत के करने से समाज में नारीयों के प्रति दृष्टिकोण में सकारात्मक परिवर्तन होता है घरेलू हिंसा में कमी आती है । लोगों के मन मस्तिष्क में स्वभाविक रूप से यह बात आती है कि -जिस नारी का पूरा जीवन परिवार में खप जाता हो ऐसे नारियों का सम्मान किया ही जाना चाहिये । ऐसे भी हमारे धर्म ग्रन्थों में कहा गया है- ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:’ ।
और त्योहारों के बारे में जानने के लिए हमारे फेस्टिवल पेज को विजिट करें Read about more Indian Festivals, please navigate to our Festivals page.
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शरद पूर्णिमा क्यों मनाया जाता है – Why is Sharad Purnima celebrated?
भारतीय पर्वो के उदय होने से निराशा के बादल छट जाते हैं और जीवन रूपी आकाश मण्डल में अध्यात्म, आस्था, विश्वास, श्रद्धा, उत्सव, उमंग और बंधुत्व रूपी सात चटक रंग एक साथ इंद्रधनुष की भांति प्रदिप्त हो जाते हैं । भारत अपनी संस्कृतिक विरासत के कारण दुनिया में ध्रुव तारा की भांति अलग से ही दिखाई दे जाता है । यहां लगभग हर सप्ताह किसी न किसी पर्व, उत्सव, त्यौहार के उमंग से लोग नाचते-गाते रहते हैं । इन्हीं पर्वो में एक आस्था रंग का पर्व है ‘शरद पूर्णिमा पर्व ।‘
चन्द्रमा का सीधा संबंध मन से होता है और मन का सीधा संबंध आंनद से होता है । चन्द्रमा का घटना-बढ़ना और मन का खिन्न होना-प्रसन्न होना एक सा है । पूर्णिमा में जब चांद अपने पूरे आकार में होता है तो मन भी प्रसन्नता से खिल उठता है ।
चनद्रमा के प्रभाव यदि कला में आंके तो इसकी संपूर्ण कला 16 होती है । अपने घटने-बढ़ने के क्रम में इन 16 कलाओं में कुछ कला जोड़ते हैं अथवा छोड़ते हैं किन्तु संपूर्ण 16 कला में चन्द्रमा पूरे साल में केवल एक दिन ही रह पाता है और वह दिन है ‘शरद पूर्णिमा’ का ।
इस पर्व को भिन्न-भिन्न राज्यों में भिन्न-भिन्न नामों से मनाया जाता है । उत्तर भारत के ब्रज श्रेत्र में रास पूर्णिमा एवं टेसू पूनै नाम से मनाया जाता है । उडिसा, पश्चिम बंगाल, असम जैसे कुछ राज्यों मे कोजगारी लक्ष्मी पूजा के नाम से मनाया जाता है । इसे कौमुदी व्रत के रूप में भी मनाते हैं ।
शरदपूर्णिमा कब मनाते है – When is Sharad Purnima celebrated?
शरद पूर्णिमा का पर्व शरदीय नवरात्र और दशहरा के चंद दिनों के बाद ही आता है । अश्विन शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक शारदीय नवरात्र और दशमी तिथि को विजयदशमी या दशहरा इसके ठीक चौथे-पॉंचवे दिन पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा का पर्व पूरे भारत में श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है । वर्षा ऋतु के अवसान और शरद ऋतु के आग मन के संधि बेला में शरद पूर्णिमा का पर्व पूर्णिमा के गोलाकार चाँद, जो अपने संपूर्ण 16 कला के साथ लेकर आता है ।
शरदपूर्णिमा क्यों मनाया जाता है – Why is Sharad Purnima celebrated?
प्रत्येक पर्व के मनाने के पिछे कोई न कोई कारण होता ही है । इस पर्व को मनाये जाने के पिछे भी कई-कई कारण है । इनमें प्रमुख कारण इस प्रकार हैं-
1.ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा अपनी सभी सोलह कलाओं के साथ उदित होता है । पूरे वर्ष में केवल आज ही के दिन यह संयोग बनता है इसके साथ ही इसी दिन चन्द्रमा पृथ्वी के सबसे करीब भी होता है । ऐसी मान्यता है कि चन्द्रमा के पृथ्वी के करीब होने एवं 16 कलाओं से पूर्ण होने के कारण इनकी किरणें अमृत के समान लाभदायक हो जाती हैं ।
इस कारण इसे शरद पूर्णिमा पर्व के रूप में मनाया जाता है । कुछ लोग मानते है समुद्र मंथन में इसी दिन अमृत प्राप्त हुआ था । इस कारण भी इसे पर्व के रूप में मनाया जाता है ।
2. भगवान बिष्णु के 24 अवतारों में केवल भगवान कृष्ण का अवतार 16 कलाओं से पूर्ण था । श्रीमद्भागवत में वर्णित अलौकिक प्रेम एवं नृत्य का संगम महारास, रास लीला इसी शरद पूर्णिमा पर हुआ था, जिस समय चाँद भी 16 कला में और भगवान कृष्ण भी 16 कला में थे । उस अविनाशी के इस अमृतमयी रास लीला के याद में यह शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है । इसलिये इस पर्व को ‘रासपर्व’ या ‘रास पूर्णिमा’ भी कहते हैं ।
3. लोकमान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा के रात को धन की देवी माता लक्ष्मी पृथ्वी में घूमने आती है और जिस घर में लोग जागरण करते हुये माता के स्वागत करते हैं, उनके यहां धन-धान्य की वर्षा करती है । इस लिये लोग इस दिन माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिये रात्रि जागरण करते है । इसे कोजगारी लक्ष्मी पूजा के नाम से जानते हैं ।
4. हिन्दू धर्म में एकादशी, प्रदोष एवं पूर्णिमा व्रत को महान लाभकारी बताया गया है। इस मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा व्रत करने से नि:संतान को संतान की प्राप्ति होती है । इसलिये संतान की कामना के साथ इस व्रत को मनाते हैं ।
शरदपूर्णिमा कैसे मनाया जाता है – How is Sharad Purnima celebrated?
1. शरद पूर्णिमा का चाँद 16 कलाओं के साथ पृथ्वी के सबसे करीब होता है इसलिये इनसे निकलने वाली किरणें लाभकारी होती हैं इसी कारण मान्यता है कि इस दिन अमृत की वर्षा होती है । इस अमृतवर्षा को प्राप्त करने के लिये भारत के लगभग सभी हिस्सों में लोग गाय के दूध से खीर बनाते हैं और इस खीर को अपने छत पर या ऐसे स्थान पर रखते हैं जिससे इस पर चन्द्रमा की किरणें पड़े । चन्द्रकिरणों से युक्त इस खीर को महाप्रसाद के रूप में खाया जाता है । मान्यता है कि इस खीर को खाने से तन मन स्वस्थ रहता है रोगों का आक्रमण नहीं होता । इससे सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है ।
2. मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा के रात के वृंदावन के निधि वन में भगवान कृष्ण आज भी रास रचाते हैं । इस रास लीला के स्मृति में वृंदावन स्थित बांके बिहारी मंदिर में इस दिन भगवान को इस प्रकार सजाया जाता है कि वह श्वेत परिधान में मुरली बजाते हुये मन मोहक लगने लगते हैं जैसे सचमुच भगवान मुरली बजा रहे हों, यह श्रृंगार केवल शरद पूर्णिमा के दिन ही होता है इसलिये देश-विदेश के असंख्य भक्त इस छवि के दर्शन के लिये वृंदावन पहुँचते हैं ।
भगवान कृष्ण के महारास के याद में विभिन्न मंदिरों में कृष्ण भजनों का संगीत महोत्सव का आयोजन किया जाता है । विशेष रूप से दक्षिण भारत के रंग नाथ मंदिर, और कई मंदिरों में संगीत एवं नृत्य का महोत्सव आयोजित किये जाते हैं । इस दिन अनेक स्थानों में भी सार्वजनिक रूप से भजन संध्या आदि का भी आयोजन किया जाता है। इसके साथ ही लोग अपने घर में ही कृष्ण अराधना करते रात जागरण करते हैं ।
3. उडिसा, पश्चिम बंगाल, असम जैसे कुछ राज्यों शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूजा के रूप में मनाते हैं । इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है । इस दिन माता लक्ष्मी की ठीक उसी प्रकार पूजा की जाती है जिस प्रकार दीपावली पर करते हैं । अंतर केवल यह है कि दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजा के बाद रात्रि जागरण का कोई विशेष नियम है जबकि इसमें लक्ष्मीजी की विधिवत पूजा करने के पश्चात लक्ष्मीजी के स्वागत में रात्रि जागरण करना चाहिये ।
लोक मान्यता के अनुसार जिस घर में रात्रि जागरण किया जाता है वहॉं माँ लक्ष्मी धन-धान्य की पूर्ति करते हैं । लोग यह भी मानते हैं कि इस दिन घर का द्वार बंद कर सोने से माँ लक्ष्मी रूष्ट हो जाती हैं और उस घर दरिद्रता का प्रवेश का हो जाता है ।
4. ऐसे वर्ष के प्रत्येक पूर्णिमा को व्रत किया जाता है किन्तु शरद पूर्णिमा व्रत का विशेष महत्व है इसे कौमुदी व्रत के नाम से करते हैं । इस दिन निराहार या फलाहार व्रत किया जाता है । ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान की प्राप्ति होती है । यदि इस व्रत को संतानवति माता करे तो उनके संतान के कष्ट दूर होते हैं ।
5. शरद पूर्णिमा के अवसर पर अनेक स्थानों पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है । कई स्थानों पर कवि-सम्मेलन किये जाते हैं । इन सबका एक मात्र उद्देश्य रात्रि जागरण करना होता है । इस कार्यक्रम में खीर बनाकर कार्यक्रम के बाद प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं ।
शरदपूर्णिमा पर्व का महत्व – Importance of Sharad Purnima
प्रत्येक पर्व का अपना एक धार्मिक एवं अध्यात्मिक महत्व होता है । इसी प्रकार शरद पूर्णिमा को भगवान कृष्ण के महारास के स्मृति में किये जाने पर भक्तों की मुक्ति की कामना होती है । वहीं लक्ष्मी जी के पूजन से सुख-समृद्धि की कामना करते हैं । कौमुदी व्रत के रूप मे संतान की कामना करते हैं । इस प्रकार इसका धार्मिक व अध्यात्मिक महत्व स्पष्ट होता है ।
इस पर्व पर संगीत-नृत्य महोत्सव आयोजित किये जाते हैं साथ ही साथ अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं कवि-सम्मेलन आयोजित किये जाते हैं जिससे इसका अपना एक विशेष सांस्कृतिक महत्व है ।
इस पर्व पर अनेक सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित किये जाने के कारण लोगों में सामाजिक समरसता की भावना प्रबल होती है । इस प्रकार इस पर्व का एक विशेष सामाजिक महत्व भी होता है ।
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Reference
source https://hindiswaraj.com/sharad-purnima-kyu-manate-he-in-hindi/?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=sharad-purnima-kyu-manate-he-in-hindi
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