भारत के हर एक शहर की अपनी एक अलग पहचान है। पूरा भारत देश ही विरासत है। आज का कर्नाटक राज्य प्राचीन काल में मैसूर राज्य के नाम से प्रसिद्ध था। ये शहर प्राचीन ऐतिहासिक होने के साथ साथ कर्नाटक की सांस्कृतिक राजधानी है।
और इसी शहर के केंद्र में स्थित है, आलीशान मैसूर महल। यह महज एक महल नहीं है, बल्कि यह मैसूर के गौरव का प्रतीक है। मुझे चिकमगलूर जाना था, तो मन में विचार आया कि क्यों ना मैसूर घूमते हुए चला जाए।
मैसूर महल के ऑनलाइन चित्रों ने मझे वहां जाने को मजबूर कर दिया। बंगलौर से सुबह की बस लेकर मैसूर पहुंचा। गूगल ने निर्देश दिया कि बस स्टॉप से चंद कदमों की दूरी पर ही मैसूर महल स्थित है।
Luxurious entrance- आलीशान प्रवेश द्वार
पदयात्रा करते हुए कुछ मिनटों में ही मैं मैसूर महल के प्रवेश द्वार पर था। बगल में टिकट खिड़की की तरफ नजर पड़ी तो एक लम्बी लाइन लगी थी। किसी तरह जद्दोजहद करते हुए टिकट प्राप्त किया और अंदर प्रवेश किया। प्रवेश करते ही देखा कि बाईं तरफ द्रविड़ियन शैली का एक मंदिर है। कालभैरव को समर्पित यह मंदिर मनोरम दृश्य प्रस्तुत कर रहा था। दूर से जब बाईं और नज़र दौड़ाई तो एक बड़े परिसर में महल की धुंधली से छवि दिखी। अब तो मानो पैरों में जान आ गई हो। कदम तेज़ी से बढ़ने लगे और आंखें महल को पास से देखने को आतुर हो उठी।
Architecture of the palace- महल की वास्तुकला
अंततः मैं महल के सामने था और जो दृश्य मैं देख रहा था, वो अद्भुत था। मेरा मुंह खुला का खुला रह गया। मैंने इतना बड़ा और आलीशान महल अपने जीवनकाल में नहीं देखा था। चलिए आपको महल की वास्तुकला से रूबरू करवाया जाए।
महल के ऊपर गुंबद हैं। गुंबदों की वास्तुकला शैली को आमतौर पर हिंदू, मुगल, राजपूत और गोथिक शैलियों का मिश्रण है। यह एक तीन मंजिला संरचना है, जिसमें संगमरमर के गुंबद आकर्षक लगते हैं। महल एक बड़े बगीचे से घिरा हुआ है।
मुख्य परिसर लंबाई लगभग 245 फीट और चौड़ाई 156 फीट है। महल में तीन प्रवेश द्वार हैं: पूर्वी द्वार (सामने का द्वार, केवल दशहरा के दौरान और गणमान्य लोगों के लिए खोला जाता है), दक्षिण प्रवेश द्वार (सार्वजनिक के लिए), और पश्चिम प्रवेश द्वार (आमतौर पर केवल दशहरा के दौरान खोला जाता है)।
कई फैंसी मेहराब इमारत के अग्रभाग को दो छोटे मेहराबों से सुशोभित करते हैं जो मध्य एक के दोनों तरफ लंबे स्तंभों के साथ समर्थित हैं। सौभाग्य, समृद्धि और धन की देवी गजलक्ष्मी की एक मूर्ति, जिसमें हाथी हैं, केंद्रीय मेहराब के ऊपर विराजमान हैं। चामुंडी हिल्स के सामने स्थित महल देवी चामुंडी के प्रति मैसूर के महाराजाओं की भक्ति का प्रकटीकरण दर्शाता है।
internal structure- आंतरिक संरचना
मैं महल में प्रवेश का द्वार ढूंढ रहा था, तभी एक व्यक्ति ने इशारा करते हुए बताया कि उस तरफ से आना है।
बताए हुए रास्ते पर चलकर मैं एक परिसर में पहुंचा जहां बहुत सारे काउंटर बने थे। यहां चप्पलों और जूतों को जमा करना होता है। इसी के ठीक सामने पानी की व्यवस्था है, जहां से पानी पीने और बोतल भरने की सलाह दी जाती है।
थोड़ी सुरक्षा औचारिकताएं पूरी करने के पश्चात अंदर प्रवेश की अनुमति मिली। जैसे ही आप महल में प्रवेश करते हैं, पहली उल्लेखनीय चीज प्रवेश द्वार और मैसूर पैलेस का मेहराब है, जो वाडियार राजवंश के आदर्श वाक्य के साथ संस्कृत में लिखा गया है, “न बिश्बती विधान” (जो कभी भी घबराता नहीं है)।
मुख्य रूप से महल तीन भागों में विभाजित है –
- दरबार हॉल
- कल्याण मंडप
- अम्बा विलास या प्राइवेट दरबार हॉल
Darbar Hall- दरबार हॉल
यहां प्रवेश करते ही पहली नजर फ्रेंच लैंप पर पड़ी जो हॉल की मनमोहकता में वृद्धि कर रहे थे। पास में ही कृष्णराज वॉडेयार की एक मूर्ति कुर्सी पर विराजमान अवस्था में है। अत्यंत जीवंत सी लगती है यह मूर्ति।
इस बड़े स्तंभ वाले हॉल की पिछली दीवारों पर एक तेल चित्रकला ( ऑयल पेंटिंग) है जिसमें केरल राजा रविवर्मा द्वारा सीता स्वयंवर का चित्रण किया गया है। हॉल को देवी के आठ रूपों को चित्रों के रूप में सजाया गया है। इतनी बारीकी से कि गई कारीगरी और सही रंगों का संयोजन बताता है कि उस समय के कारीगरों कितने निपुण होते थे।
Kalyan Mandap- कल्याण मंडप
यह हिस्सा आपको अवाक छोड़ देगा। इसकी रूपरेखा और सुंदरता आज भी मेरे मस्तिष्क में बसा हुआ है।
अष्टकोणीय आकार के इस हॉल में शाही शादियाँ, जन्मदिन और समारोह आयोजित किए जाते हैं। यहां कुल 26 पेंटिंग हैं, जो दशहरा के उत्सव को दर्शाती हैं। साथ ही कुछ अन्य पेंटिंग्स हैं जो कृष्णराज वाडियार चतुर्थ का जन्मदिन, देवी चामुंडेश्वरी का कार उत्सव, कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव, दुर्गा पूजा या अयोध्या पूजा को दर्शाती हैं। दशहरा उत्सव का प्रतिनिधित्व करने वाली पेंटिंग वास्तविक तस्वीरों पर आधारित है।
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