- दशहरा पर्व इसे विजयीदशमी पर्व भी कहते हैं – Dusshera is also called Vijayadashmi
- दशहरा कब मनाते हैं – When is Dusshera Celebrated?
- दशहरा क्यों मनाया जाता है – When is Dusshera celebrated?
- दशहरा किस प्रकार मनाया जाता है – How is Dusshera Celebrated?
- दशहरा पर्व की विभिन्न परम्पराएं – Various Traditions of Dusshera
- भारत के कुछ प्रसिद्ध दशहरा पर्व – Some famous Dussehra festivals of India
- दशहरा पर्व का महत्व – Importance of Dusshera
- Reference
दशहरा पर्व इसे विजयीदशमी पर्व भी कहते हैं – Dusshera is also called Vijayadashmi
‘सत्य ही ईश्वर है ।‘ यह ध्येय वाक्य भारतीय संस्कृति का दर्शन है ।
’सत्य परेशान हो सकता है, पराजित कभी नहीं हो सकता । बुराई चाहे जितनी भी बलवती हो वह सदा बनी नहीं रह सकती । अधर्म, अन्याय, अनीति हमेशा त्यागने योग्य होता है । यदि कोई शक्ति अधर्म, अनीति, अन्याय का प्रतिक हो जाये तो परम शक्ति स्वयं इन शक्तियों को नष्ट कर देती है । परमपिता परमात्मा का यही उद्घोष है कि- ‘जब-जब धर्म की हानि होती है, तब-तब मैं स्वयं धरती पर अवतरित होकर अधर्म का नाश कर धर्म की रक्षा करता हूँ ।‘ इसी बात को गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं –
‘यदा यदा हि धर्मस्या, ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानम् अधर्मस्या, तदात्मानं सृजाम्यहम् । ।
परित्राणाय साधूनां. विनाशाय च दुष्कृताम ।
धर्मसंस्थापनार्थाय, संभवामि युगे युगे । ।
रामचरित मानस में भी भगवान शंकर, मॉं पार्वती को राम जन्म के कारण बताते हुये कहते हैं-
जब-जब होई धरम की हानि । बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी
तब-तब प्रभु धरि विविध शरीरा । हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा
इसी उद्घोष का फलित होने का प्रतिक है दशहरा पर्व । असत्य पर सत्य की जीत, बुराई पर अच्छाई की जीत होती है । इस बात पर लोगों के विश्वास को और मजबूत करने का पर्व है ‘दशहरा’ । असत्य पर सत्य की जीत, अधर्म पर धर्म की जीत, अन्याय पर न्याय की जीत का पर्व होने के कारण ही इसे विजयीदशमी पर्व भी कहते हैं ।
भारत में अनेक तीज-त्यौहार, पर्व-उत्सव मनाये जाते हैं । प्रत्येक का अपना एक अलग महत्व होता है । प्रत्येक पर्व के पीछे कोई न कोई पौराणिक कारण होने के साथ-साथ प्रत्येक पर्व के पीछे एक अध्यात्मिक संदेश अवश्य होता है । आनंद पूर्वक उत्सव मनाते हुये इस बहुमूल्य संदेश को अनुभव करना हमारे उत्सवों की विशेषता है / इसी क्रम का एक महत्वपूर्ण पर्व है ‘दशहरा’ जो सत्य, धर्म, न्याय को आत्मसात करने का संदेश देता है ।
दशहरा कब मनाते हैं – When is Dusshera Celebrated?
दशहरा पर्व प्रति वर्ष हिन्दी चंद्रमास अश्विन माह के शुक्ल पक्ष के दसमी तिथि को नवरात्रि पर्व के अंत में विजयदश्मी के रूप में मनाया जाता है । यह अंग्रेजी महीने के अक्टूबर के आसपास पड़ता है ।
दशहरा क्यों मनाया जाता है – When is Dusshera celebrated?
ऐसे तो प्रत्येक पर्व या उत्सव को जन रंजन अर्थात लोगों की खुशी के लिये सुख समृद्धि की कामना के साथ मनाया जाता है किन्तु प्रत्येक पर्व के पीछे कोई न कोई पौराणिक कारण अवश्य मिलता है । दशहरा मनाये जाने के पीछे भी पौराणिक कथा प्रचलित है । यह कथा बाकी कथाओं में सबसे ज्यादा प्रचलित कथा है जिसे प्राय: लोग रामचरित मानस, रामायण के माध्यम से जानते हैं ।
इस कथा के अनुसार त्रेताग में रावण नामक एक महापराक्रमी दैत्य राजा रावण हुये जो महापंडित ज्ञानी होने के बाद भी अत्याचारी और अधर्मी थे । इनके विनाश के लिये परमपिता परमात्मा स्वयं राम के रूप में अवतरित हुये । राम की पत्नी को रावण छल से चोरी करके ले गये । इसके प्रतिकार स्वरूप राम ने रावण की लंका पर आक्रमण किया और दोनों के बीच दस दिनों तक भयंकर युद्ध हुआ और अंत में रावण मारा गया ।
रावण ज्ञानी होने के बाद भी एक अधर्मी, अन्यायी, और असत्य पथगामी का व्यवहार किया । इसी कारण रावण वध को असत्य पर सत्य की जीत, अधर्म पर धर्म की जीत और अन्याय पर न्याय की जीत के रूप में मनाया जाता है ।
शारदीय नवरात्र के ठीक बाद दशहरा मनाने के पीछे राम की शक्ति पूजा की कथा है जिसके अनुसार भगवान राम, रावण से युद्ध के ठीक पहले नौं दिनों तक आदि शक्ति की चण्डिका रूप में का पूजन किया जिसमें उन्होंने पूजा करते समय रावण के माया के कारण एक नील कमल का दुर्लभ पुष्प कम होने पर अपने एक ऑंख को मॉं के चरणों मे अर्पित करने के लिये जैसे ही तैयार हुआ मॉं चण्डी प्रकट होकर उन्हे रावण से विजय प्राप्त करने का आर्शीवाद दिया ।
इसके बाद दसवें दिन राम, रावण को मारने में सफल हुये थे । इसी कारण दशहरा के ठीक पहले शक्ति अराधना के रूप में नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है फिर दशहरा उत्सव मनातें हैं । इसी समय दुर्गाष्टमी के दिन माँ दुर्गा ने महिषासुर अधर्मी का विनाश किया था, इस कारण भी इसे अधर्म पर धर्म के जीत के रूप में मनाया जाता है ।
दशहरा किस प्रकार मनाया जाता है – How is Dusshera Celebrated?
दशहरा पर्व के ठीक पहले नौ दिनों तक शक्ति अराधना का पर्व नवरात्रि मनाया जाता है जिसमें नौ दिनों तक मॉं आदि शक्ति के नौ रूपों का शास्त्रीय विधि से पूजा-पाठ किया जाता है । इन्हीं नौं दिनों के दौरान रामलीला का मंचन भी किया जाता है । नवरात्रि के ठीक दूसरे दिन दशहरा का उत्सव मनाया जाता है ।
ऐसे तो विभिन्न हिस्सों अलग-अलग ढंग से दशहरा का पर्व मनाया जाता है फिर भी सामान्य रूप से पूरे देश में इस दिन भगवान राम के द्वारा रावण वध की घटना को किसी न किसी रूप में दिखाया जाता है ।
अधिकांश स्थानों में रामलीला का मंचन किया जाता है कहीं-कहीं रामलीला के विशेष भाग राम-रावण युद्ध के दृश्य को झांकी के रूप में दिखाया जाता है । इसके साथ रावण, कुम्भकरण और मेघनाथ के पुतले बनाकर सार्वजनिक स्थान पर रख लेते हैं और विशाल जन समुदाय के बीच राम-रावण के वेश में प्रतिकात्मक रूप से उस युद्ध का स्मरण करते हुये नाट्य मंचन करते हैं ।
नाट्य मंचन के पश्चात बनाये गये पुतलों का दहन किया जाता है । इन पुतलों के दहन के साथ आजकल आतिशबाजी भी किया जाता है । इस पुतला दहन को ही असत्य पर सत्य की जीत का प्रतिक माना जाता है ।
दशहरा पर्व के दिन लोग राम मंदिर जाकर भगवान को रावण जैसे अत्याचारी से धरती को मुक्त कराने के लिये धन्यवाद देने के भाव से प्रणाम करते हैं तथा इसी प्रकार हर अत्याचार, विपदा से बचाने की प्रार्थना करते हैं ।
इस पर्व की भव्यता इतनी अधिक होती है कि जिस स्थान पर रावण का पुतला दहन किया जाता है वहीं विशाल मेले का आयोजन भी होता है । बच्चों से लेकर बुढ़े तक इस पर्व में उत्साह पूर्वक भाग लेते हैं ।
दशहरा पर्व की विभिन्न परम्पराएं – Various Traditions of Dusshera
शस्त्र पूजन की परम्परा- दशहरा पर्व के दिन शस्त्र पूजन करने की प्राचीन परम्परा रही है । इस परम्परा का महत्व राजघरानों में अधिक था । इस दिन राजा-महराजा अपने हथियारों की विधिवत पूजन करके अपने लिये विजयी होने का आर्शीवाद मांगा करते थे ।
इतिहास में राजा विक्रमादित्य, छत्रपति शिवाजी जैसे महावीरों के द्वारा शस्त्र पूजन के प्रमाण मिलते हैं । इसी परम्परा के अंतर्गत आज भी शस्त्र पूजन किया जाता है । शासकीय शास्त्रगार में शस्त्रों की पूजा की जाती है । सेना भी इस दिन देश की यश, कीर्ति एवं सुरक्षा के कामना के साथ अस्त्र पूजा करते हैं । व्यक्तिगत सुरक्षा के लिये रखे अस्त्रों के पूजा लोग अपने घर में करते हैं ।
रामलीला मंचन की परम्परा- दशहरा पर्व से लगभग एक माह पहले से देश के विभिन्न स्थानों में रामलीला का मंचन करने की परम्परा आज भी जीवित है । इस मंचन में भगवान राम से जुड़ी कथाओं का जीवंत प्रदर्शन किया जाता है । देश के अनेक सभागारों, मैदानों का नाम इसी के आधार रामलीला सभागार या रामलीला मैदान पड़ गया है । इसमें राजधानी दिल्ली में स्थित रामलीला मैदान विश्व प्रसिद्ध है । प्राय: हर छोटे-बड़े गांव-शहर में दशहरा पर्व मनाने के सार्वजनिक स्थान को दशहरा मैदान के नाम से जाना जाता है । अनेक स्थानों में दशहरा मैदान में ही रामलीला का मंचन किया जाता है ।
शमीवृक्ष की पूजन की परम्परा- दशहरा पर्व में शमी वृक्ष की पूजन की परम्परा भी प्रचलित है । इस परम्परा के अनुसार दशहरा के दिन शमीवृक्ष का पूजन किया जाता है और शौर्य साहस का आर्शीवाद लिया जाता है । इस परम्परा के पीछे मान्यता है कि शमीवृक्ष में अन्य वृक्षों की तुलना में अग्नी प्रचुर मात्रा में होती है । इसे दृढ़ता एवं तेजस्विता का प्रतिक मानकर इसकी पूजा की जाती है । कहीं-कहीं एक विशेष प्रकार का एक वृक्ष जिसके पत्तियों को सोनपान या सोनपत्ती कहते हैं, दशहरे के दिन इस सोनपत्ती को राममंदिर में, रावण के पुतले में चढ़ाया जाता है । रावण पुतला दहन होने के बाद लोग इसे एक-दूसरे को भेट करके दशहरा की शुभकामना देते हैं ।
भारत के कुछ प्रसिद्ध दशहरा पर्व – Some famous Dussehra festivals of India
ऐसे तो समूचे भारत में दशहरा का पर्व पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है । सभी स्थानों का पर्व अपने आप में महत्वपूर्ण होता है । किसी स्थान विशेष के इस उत्सव दूसरे की तुलना कमतर कहना उचित नहीं है । किन्तु कुछ स्थानों पर इस पर्व को सामान्य परम्परा से हट कर कुछ विशेष तरीके से मनाये जाने के कारण देश में चर्चित हैं । इनमें प्रमुख है बस्तर दशहरा, कुल्लू दशहरा, मैसूर का दशहरा ।
बस्तर का दशहरा- बस्तर का दशहरा दो कारणों से प्रसिद्ध है पहला इस दशहरे का संबंध पारंपरिक मान्यता रावण वध से नहीं है और दूसरे इसे सबसे लंबे पर्व के रूप में पूरे 75 दिनों तक मनाया जाता है । इसे 1408 से चालुक्य वंशीय राज परिवार की इष्ट देवी तथा बस्तर अंचल के समस्त लोक जीवन की ईष्ट व राज्य की आराध्या देवी दंतेश्वरी के प्रति श्रद्धा-भक्ति की सामूहिक अभिव्यक्ति का पर्व के रूप में मनाया जाता है ।
इस पर्व का शुभारंभ श्रावण अमास्या के दिन पाठजात्रा से प्रारंभ होता है, इसमें इस उत्सव के लिये बनाये जाने वाले रथ के लिये उपयोग में आने वाली लकड़ी की पूजा की जाती है । इसके बाद डेरी गड़ाई, काछिनगादी, जैसे कई परम्पराओं का निर्वहन करते हुये अश्विन शुक्ल एकम को कलश स्थापना, द्वितीया से सम्तमी तक फूलरथ परिक्रमा का आयोजन किया जाता है
अष्टमी के दिन महाष्टमी पूजा करके निशा जात्रा रस्म निभाई जाती है जिसमें इस रात मॉं दंतेश्वरी मंदिर में बलिप्रथा का निर्वहन किया जाता है । नवमी के कन्या पूजन और दशमी के दिन मॉं दन्तेश्वरी की रथ यात्रा निकाली जाती है । इस यात्रा की शोभा, भव्यता और मान्यता, जगन्नाथपुरी के प्रसिद्ध रथ यात्रा के बराबर मानी जाती है । इस रथ यात्रा को देश विदेश के असंख्य लोग देखने आते हैं ।
कुल्लू का दशहरा- कुल्लू का दशहरा कुछ हद तक बस्तर दशहरा जैसे ही है । यहां भी देवी देवताओं की रथ यात्रा निकाली जाती है, जुलुस में उत्सव मनाया जाता है । एक दिन से अधिक दिनों का दशहरा पर्व मनाया जाता है । कुल्लू में दशहरा सात दिनों तक मनाया जाता है । यहां का दशहरा पर्व तब प्रारंभ होता है जब पूरा देश दशहरा मना चुका होता है । यहां का दशहरा देश अन्य भागों में दशहरा समाप्त होने के साथ अश्विन शुक्ल दशमी को प्रारंभ होता है और पूरे सात दिन चलता है इस उत्सव में हिमांचल के कुल देव रघुनाथजी का रथ यात्रा निकाला जाता है । यहॉं रावण का पुतला दहन नहीं होता । कुल्लू दशहरा देखने के लिये देश विदेश के लोग आते हैं ।
मैसूर का दशहरा- मैसूर का दशहरा देश के अन्य दशहरे से इसी बात में अलग है कि यहां भी रावण का पुतला नहीं जलाया जाता है । इस पर्व का प्रारंभ 1610 विजय नगर के राजवंश के द्वारा किया गया । मैसूर दशहरा 10 दिनों तक चलता है । नवरात्रि पर्व के साथ प्रारंभ होने वाले इस दशहरे पर्व के अंतिम दिन जम्बू सवारी शोभा यात्रा का आयोजन किया जाता है जिसमें लगभग दर्जन भर हाथियों का जुलुस निकाला जाता है ।
इन हाथियों के प्रमुख हाथी को बलराम कहते हैं जिसके पीठ पर ऐताहासिक स्वर्ण मंडप जिसे हौज कहते हैं को रखा जाता है । इस हौज पर मैसूर की देवी चामुण्डेश्वरी देवी को विराजित कर नगर भ्रमण कराया जाता है । यह यात्रा इतना भव्य होता है कि यह देखते ही बनता है । इस अवसर पर मैसूर राजमहल को दुल्हन की तरह सजाया जाता है ।
दशहरा पर्व का महत्व – Importance of Dusshera
दशहरा पर्व देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग तरह से मनाया जाता है जिसमें दो बातें एक समान है पहला इसमें देवी अराधना किया जाता है और देवी की शोभा यात्रा निकाली जाती है और दूसरा रावण पर राम के विजय के रूप इसे मनाया जाता है ।
इस पर्व का अध्यात्मिक महत्व के साथ-साथ सांस्किृति महत्व अधिक देखने को मिलता है । विभिन्न राजघरानों की परम्पराएं आज भी जीवंत हो जाती हैं । इन संस्कृतियों के झलक देखकर इस बात पर गर्व होता है कि हॉं, निश्चित रूप से हमारा देश सोने की चिड़िया रहा होगा ।
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Reference
source https://hindiswaraj.com/dusshera-kyu-manate-he-in-hindi/?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=dusshera-kyu-manate-he-in-hindi
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