महानवमी – Mahanavmi
हमारे देश में ‘नवरात्रि’ का पर्व एक मात्र ऐसा पर्व है जिसे एक वर्ष के भीतर ही दो बार प्रकट रूप में एवं दो बार गुप्त रूप में मनाया जाता है । पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा, गुजरात की गरबा और देश भर में देवी शक्ति पीठों में लगने वाले नौ दिवसीय मेला ‘नवरात्रि पर्व’ के महत्व को दिखाती हैं । नवरात्रि पर्व को शक्ति पर्व के रूप में पूरे देश में श्रद्धा एवं विश्वास के साथ मनाया जाता है ।
साल में दो बार इस पर्व को सार्वजनिक रूप से मनाया जाता है । एक बार हिन्दू नववर्ष के पहले महिना चैत्र में वर्ष प्रतिपदा से रामनवमी तक तथा दूसरा अश्विन माह के शुक्ल पक्ष के एकम से नवमी तक ।
नौ दिनों तक चलने वाले इस पर्व में प्रत्येक दिन देवी के भिन्न-भिन्न रूपों की पूजा होती है, भक्त नौं दिनों के निराहार या फलाहार व्रत करते हैं । इस व्रत का परायण आठवें दिन यज्ञादिक हवन करने के पश्चात नवमी को करते हैं । इस नवमी तिथि को दुर्गा नवमी या महानवमी के नाम से जाना जाता है । वासंतीय नवरात्र के अंतिम दिन रामनवमी होता है । इसलिये शारदीय नवरात्र का अंतिम दिन ही महानवमी के रूप में प्रसिद्ध है ।
महानवमी कब मनाया जाता है – When is Mahanavmi celebrated?
महानवमी, नवरात्रि पर्व का एक भाग है । जो इस पर्व के अंतिम दिन मनाया जाता है । महानवमी का संबंध नवरात्रि के प्रत्येक दिन से है किंतु दुर्गाष्टमी एवं महानवमी दोनों एक दूसरे से जुड़ हुये हैं । दुर्गाष्टमी से नवरात्रि पर्व का समापन प्रारंभ होकर महानवमी को पूर्ण हो जाता है ।
ऐसे तो दोनों नवरात्रि पर्व के नवमी तिथि महानवमी है किन्तु शारदीय नवरात्रि के नवमी तिथि महानवमी के रूप में अधिक मान्य है । इस मान्यता के अनुसार अश्विन मास के शुक्ल पक्ष के अष्टमी तिथि को दुर्गाष्टमी एवं नवमी तिथि को महानवमी या दुर्गानवमी के रूप मनाया जाता है ।
आदिशक्ति जगदम्बा की ममतामयी कृपा पाने के लिये नवरात्रि में दुर्गाष्टमी एवं महानवमी पूजन का विशेष महत्व है । इन दिनों के पूजा से भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है । सुखमय जीवन, खुश हाल परिवार, धन-वैभव, यश-कीर्ति यहां तक की जीवन के अंतिम लक्ष्य मोक्ष तक की प्राप्ति से इस पर्व से संभव है ।
महानवमी क्यों मनाया जाता है – Why is Mahanavmi celebrated?
आदि शक्ति मॉं जगदम्बे की पूजा की कथा चारों युगों में मिलती है । सतयुग में महिषासुर नामक एक दैत्य हुआ, जो देवताओं के लिये अजेय था । जिसे वरदान के कारण केवल नारी ही मार सकती थी । उस दैत्य को मारने के लिये मॉं जगदम्बा ने दुर्गा रूप धारण किया और उस दैत्य के साथ नौं दिनों तक घोर युद्ध हुआ और नवें दिन उस दुरात्मा महिषासुर का वध हुआ ।
इस लिये पूरे नौ दिन को नवरात्रि के रूप में मनाते हुये अंतिम दिन को महानवमी के रूप में मनाया जाता है । मॉं के इस रूप को ‘दुर्गा दुर्गति नाशनि’ के रूप में जाना गया । त्रेता युग में भगवान राम की शक्ति पूजा प्रसिद्ध है । रावण से युद्ध के ठीक पहले भगवान राम ने नौं दिनों तक आदि शक्ति के चण्डिका रूप का पूजन किया जिसमें उन्होंने पूजा करते समय रावण के माया के कारण एक नील कमल का दुर्लभ पुष्प कम होने पर अपने एक ऑंख को मॉं को चरणों अर्पित करने के लिये जैसे ही तैयार हुआ मॉं चण्डी प्रकट होकर उन्हे रावण से विजय प्राप्त करने का आर्शीवाद दिया ।
भविष्य पुराण के अनुसार भगवान कृष्ण ने धर्म राज युधिष्ठिर से दुर्गाष्टमी एवं महानवमी पूजन का आयोजन कराया था । इसी कारण इस कलयुग में इस पूजन का विशेष महत्व है । मॉं जगदम्बा जो आदि शक्ति हैं इस धरती में विभिन्न नामों से पूजी जाती हैं । देश के अधिकांश गांवों और शहरों में किसी न किसी नाम से देवी मंदिर अवश्य मिलता है । यह देवी की सर्वव्यापकता को प्रदर्शित करता है ।
महानवमी किस प्रकार मनाया जाता है – How is Mahanavmi celebrated?
नवरात्रि के आठवें दिन मॉं जगदम्बे की महागौरी के रूप में पूजा की जाती है । भगवती महागौरी कठिन तपस्या के लिये वेदों में विख्यात हैं । महागौरी की पूजा-अराधना से सभी मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं । अष्टमी को मॉं की शास्त्रीय विधि से पूजा करने के बाद रात्रि को जागरण करते हुये भजन, कीर्तन करते हुए उत्सव मनाया जाता है । महागौरी की पूजा से सभी प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है । धन-वैभव प्राप्त होता है । जो लोग नवरात्रि के नौ दिनों का व्रत नहीं कर सकते दुर्गाष्टमी पर एक दिन का ही व्रत करके नवरात्रि व्रत का फल प्राप्त करते हैं ।
आज के दिन देश भर के सभी छोटे-बडे देवी मंदिरों में अपार भीड़ होती है । गांव-गांव, शहर-शहर, मोहल्ले-मोहल्ले के लोग आज के दिन निश्चित रूप से मंदिर जाकर मॉं के श्री चरणों में अपने मनोकामना रखते हैं । इस दिन नहीं के बराबर लोग ही मंदिर नहीं जाते होंगे अन्यथा सभी लोग मंदिर जाते हैं ।
नवरात्रि पर्व विशेष कर दुर्गाष्टमी के दिन रात्रि जागरण का विशेष महत्व होता है । यही कारण है कि रतजगा अर्थात रात्रि जागरण के विशेष भजन, कीर्तन का आयोजन किया जाता है । देश के अधिकांश भागों में इस दिन गरबा, डांडिया आदि का धूम होता है । इस आयोजन के लिये महिला-पुरूष विशेष परिधान (गुजराती परिधान) पहन कर आयोजन में हिस्सा लेते हैं और पूरी रात माता के भजनों पर नाचते हुये व्यतित कर देते हैं ।
देश के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न प्रकार से देवी गीत, गीत-नृत्य करते है। आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में, ग्रामीण क्षेत्रों में लोक रीति से इस पर्व को मनाया जाता है । लोक गीत एवं लोकनृत्य इसके आकर्षक प्रस्तुति होते हैं । इस लोकनृत्य, लोक गीत में हिस्सा लेने के लिये या देखने-सुनने के लिये गांवों, टोलों में सभी घर के लोग इक्ठ्ठा होते हैं ।
शारदीय नवरात्र में दुर्गापण्डालों का दृश्य बहुत सुंदर होता है । आकर्षक ढंग से सजाये गये पण्डालों में विभिन्न धार्मिक झांकियां, सामाजिक संदेश की झांकियां लोगों की भीड को अपनी ओर आकर्षित करती हैं ।
नौंवे दिन मॉं जगदम्बे की सिद्धिदात्री के रूप में पूजा की जाती है । सिद्धिदात्री सभी प्रकार के सिद्धियों को देने वाली हैं । इसलिये इस दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा से भक्तों के सभी कार्य सिद्ध होते हैं ।
नवमी को श्रद्धा पूर्वक पूजा-हवन करके मॉं जगदम्बे के नौं रूपों के प्रतिक के रूप में नौ कन्याओं का चरण पखार कर, पूजन करके श्रद्धा पूर्वक भोजन कराते हैं । भोजन कराने के पश्चात इन कन्याओं को उचित उपहार एवं दक्षिणा दी जाती है ।
कन्या पूजन का आयोजन सार्वजनिक रूप से मंदिरों में, दुर्गा पंडालों के अतिरिक्त व्यक्तिगत रूप से घरों में भी अधिक किया जाता है । इस पूजन से हर प्रकार की बाधा दूर होती है, आनंद एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है । ऐसी मान्यता है ।
दुर्गानवमी पर बलीप्रथा भी प्रचलित है किन्तु इसके स्वरूप में अब परिवर्तन देखने को मिलता है । बलि के रूप में अब किसी जानवर के बलि के स्थान पर फलों का प्रतिकात्मक रूप से बलि दिया जाता है । इसके लिये कद्दू, पपीता, जमीकंद जैसे फलों का उपयोग किया जाता है । बलिप्रथा के प्रति लोगों में दिनोंदिन जागरूकता बढ़ रही है फिर भी आज भी कहीं न कहीं बलिप्रथा के नाम पर जानवारों की बलि चढ़ा ही देते हैं ।
दुर्गानवमी के साथ ही नौ दिनों तक चलने वाले नवरात्रि पर्व का समापन होता है । इस समापन पर्व में लोगों का उत्साह अपने चरम पर होता है । जहॉं एक ओर लोग अपनी श्रद्धा से मॉं की भक्ति में लिन होते हैा वहीं दूसरी ओर लोग गीत, नृत्य में उमंग के साथ हिस्सा लेते हैं । इस पर्व पर विभिन्न प्रकार की रीतियॉं भी देखने को मिलती है । लोक रीति, परिवार रीति, गांव रीति के अनुसार इस पर्व को मनाते हैं । यही कारण है देश के अलग-अलग हिस्से में यह पर्व अलग-अलग ढंग से मनाते हुये देखा जा सकता है । इस भिन्नता में भी एक बात की समानता होती है कि सभी लोग एक ही प्रकार के आस्था और भक्ति के साथ मॉं से अपने मनोकामना रखते हैं ।
महानवमी पर्व का महत्व – Importance of Mahanavmi
महानमवी पर्व के महत्व को कम से कम तीन प्रकार से रेखांकित किया जा सकता है । एक धार्मिक दृष्टिकोण से, दूसरा सांस्कृतिक दृष्टिकोण से और तीसरा सामाजिक दृष्टिकोण से ।
धार्मिक रूप से नवरात्रि पर्व को शक्ति पर्व के रूप में मनाया जाता है । लौकिक और पारलौकिक दोनों प्रकार के शक्ति इस पर्व से संचित किये जाते हैं । लौकिक शक्ति के रूप में लोग सांसारिक दुखों, कष्टों, समस्याओं से लड़ने के लिये शक्ति संचित करते हैं । वहीं पारलौकि शक्ति के रूप में लोग अपने अध्यात्मिक शक्ति में वृद्धि करके मानव देह के अंतिम लक्ष मोक्ष मतलब जीवन-मृत्यु के क्रम से छुटकारा पाने का प्रयास करते हैं ।
सांस्कृतिक दृष्टिकोण से नवरात्रि का पर्व बहुत महत्वपूर्ण है । इस पर देश के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न संस्कृतियों की झांकी प्रस्तुत होती है । लोग अपने संस्कृति से पूरे मनोवग से जुड़कर आत्मविभोर हो जाते हैं । कहीं-कहीं पूजा की विशेष संस्कृति है तो कहीं गायन की तो कहीं नृत्य की विशेष संस्कृति है ।
पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा की संस्कृति, गुजरात की गरबा-डांडिया नृत्य की संस्कृति, और आदिवासी बाहुल्य छत्तीसगढ़ की जेवारा, जस गीत गायन की संस्कृति के अतिरिक्त और कई संस्कृतियों का दर्शन इस अवसर पर होता है ।
सामाजिक दृष्टिकोण से भारत के विभिन्नता में एकता के लिये यह पर्व अति महत्वपूर्ण है । देश के असंख्य दुर्गा पंडालों, देवी शक्ति पीठों और देवी मंदिरों में लगने वाले मेले में लोगों का एकत्रिकरण केवल हिन्दु धर्मालंबियों का नहीं होता अपितु विभिन्न धर्मावलंबी इससे जुड़ते हैं कोई धार्मिक रूप से तो कोई व्यवसायिक रूप से ।
इस पर्व पर असंख्य मनोकामना ज्योति जलाई जाती है । अनेक नौ दिवसीय मेले लगते हैं । इन नौ दिनों में बाजार में रौनक आम दिनों से कई गुना अधिक रहता है इस प्रकार यह पर्व देश के आर्थिक विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है ।
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Reference
source https://hindiswaraj.com/mahanavmi-kyu-manate-h-in-hindi/?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=mahanavmi-kyu-manate-h-in-hindi
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